Edible Oil Price: महंगाई के दौर में रसोई घर से राहत की खबर आई है। खाने के तेल के भाव में कमी आई है। देश के तेल-तिलहन बाजारों में सभी खाद्य तेल तिलहनों के दाम गिरने लगे, जबकि देश के बंदरगाह पर आयातित तेलों की लागत से कम दाम पर बिकवाली जारी रही।
व्यापारिक सूत्रों ने बताया कि बंदरगाहों पर आयातित तेल की लागत से कम दरों पर बिक्री जारी है। आयातकों को पिछले लगभग तीन महीनों से बैंकों में अपना लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) घुमाने की मजबूरी की वजह से आयातित खाद्य तेलों को 2-3 रुपये प्रति किलो कम दाम पर बेचना पड़ा है।
3 महीने से चल रहे इस बेपड़ता कारोबार की सरकार और तेल संगठनों ने कोई जांच नहीं की है।
आयातित तेल सस्ता है—
इस निरंतर घाटे के सौदों के बीच आयातकों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। उनके पास इतना पैसा नहीं बचा कि वे आयातित खाद्य पदार्थों का स्टॉक जमा रख सकें और उन्हें लाभ मिलने पर बेच सकें। बैंकों को अपने एलसी को चलाने की जरूरत है, इसलिए आयातित तेल बंदरगाहों पर कम मूल्य पर बेचा जा रहा है। इसके अलावा, मूंगफली, सोयाबीन, सरसों और कपास जैसे तिलहनों की मंडियों में आवक कम हो रही है, बाजार सूत्रों ने पीटीआई को बताया।
नरम तेलों के निकट भविष्य में कोई समस्या उत्पन्न होने पर किसकी जिम्मेदारी होगी? सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सूरजमुखी और मूंगफली जैसे तिलहनों की बुआई का रकबा पहले से कम हुआ है।
24 नवंबर तक, 1.80 लाख हेक्टेयर में मूंगफली की खेती हुई (Edible Oil Price) थी, जबकि पिछले वर्ष 2.7 लाख हेक्टेयर में खेती हुई थी। इस बार सूरजमुखी 37,000 हेक्टेयर में बोई गई है, जबकि पिछले साल 41,000 हेक्टेयर में बोई गई थी। खरीफ मौसम में सूरजमुखी की बिजाई 66% और रबी में 10% गिरी है।
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साल दर साल खाद्य तेलों की मांग में वृद्धि
सूत्रों ने कहा कि यह मुश्किल है क्योंकि आबादी साल दर साल लगभग 10% की दर से बढ़ रही है। ऐसे में, तिलहन बुवाई का रकबा बढ़ने के बजाय घटना चिंताजनक है। मंडियों में कपास की आवक कम हो गई है और इसके खेती का रकबा भी कम हो गया है। यदि कपास उत्पादन कम होता है तो रुई आयात कर सकते हैं, लेकिन देश की जिनिंग मिलें तो?
सूत्रों ने कहा कि कपड़ा, पाल्ट्री और दवा जैसे क्षेत्रों के संगठन सरकार पर अपनी मांगें उठाकर उसके लिए दवाब बनाकर अक्सर अपनी मांगें मनवा लेते हैं, लेकिन तेल संगठन इस दायित्व को नहीं निभाता।
3 महीने से बंदरगाहों पर आयातित तेल बेपड़ता कारोबार चल रहा है, और तेल संगठनों ने शायद ही सरकार को इसकी जानकारी दी हो और इसके समाधान की मांग की हो।
सरकार को तेल संगठनों से अलग किससे मदद की उम्मीद की जानी चाहिए, जब देश में तिलहनों की मात्रा घट रही है, आयातित तेल बेपड़ता बेचा जा रहा है, तेल मिलों की बदहाली, तिलहन किसानों की माल की कमी और एमएसपी की कमी, सॉफ्ट आयल का आयात कम हो रहा है और जाड़े की बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जाएगा?उन्हें लगता था कि यह संभव है कि सभी लोग अचानक नींद से जागे जब भोजन में “प्याज” और “टमाटर” हो गया, जो बेइंतहा महंगा था।
टिन: पिछले सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 100 रुपये गिरकर 5,650–5,700 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ. कच्ची घानी तेल का भाव घटकर 1,785-1,895 रुपये पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का मूल्य 250 रुपये गिरकर 10,500 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया। टिन प्रति 15 किलो सरसो पक्की घानी तेल की कीमत 40 रुपये गिरी, जो 1,785-1,880 रुपये और 1,785-1,895 रुपये पर बंद हुआ। समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने की कीमत 115-115 रुपये की गिरावट के साथ 5,260–5,310 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुई, जबकि लूज की कीमत 5,060–5,110 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुई। सोयाबीन दिल्ली, इंदौर और डीगम तेल का मूल्य 125 रुपये और 125 रुपये है।